दानम्
श्री राधामाधव भगवान जी की प्रसन्नता हेतु मंदिर में दिये जाने वाला दान
दान देना हर किसी को नहीं आता | कोई भाग्यवाला होता है जो दान देना जानता है। दान देते समय बहुत सावधान होना चाहिए । पुराणों, उपनिषदों में समझाया गया है, कि, जब मन में दान देने की कामना हो, तो यह सोचना चाहिए कि मेरा पुण्य जागा है। अतएव अपनी सामर्थ्य के अनुसार ‘दान’ अवश्य करना चाहिए। सतयुग में तपस्या को ही सबसे बड़ा धर्म माना गया है, त्रेता में ज्ञान ही उत्तम बताया गया है। द्वापर युग में यज्ञ व कलियुग में एकमात्र ‘दान’ ही श्रेष्ठ कहा गया है।
- अन्न दान (चावल, आटा, दाल, काला तिल, जौ का आटा आदि)
- गोदान अथवा गाय के मूल्य का दान
- गोग्रास दान (गाय के लिए हरा चारा आदि का दान )
- शुद्ध घी का दान
- गाय अथवा भैंस के दूध का दान
- दही का दान
- दीपदान (मंदिर में 11, 21, 51, 101 अथवा सामर्थ्यानुसार दीप जलाना )
- तेल दान (तिल का तेल, सरसो का तेल, चमेली का तेल आदि )
- वस्त्रदान (धोती, गमछा, शॉल, साड़ी आदि)
- लोहे या स्टील का दान ( स्टील या लोहे का उपयोगी बर्तन आदि
- ताँबे के पात्र का दान.
- पीतल के पात्र का दान
- कम्बल दान
- फल दान (केला, नारियल, सेब, अंगूर आदि मौसमी फल )
- चप्पल-जूता दान
- छाता दान
- गुड़ दान
- चीनी दान
- शालग्राम शिला का दान (ठाकुरजी )
- इत्र, धूपबत्ती, अगरबत्ती का दान
- चाँदी दान (बर्तन, आभूषण आदि)
- स्वर्ण दान ( आभूषण, आदि)
- पुष्पमाला एवं पुष्प दान
- पुराज पुस्तकादि दान
- भूमि दान अथवा भूमि का मूल्य दान
- गंगाजल दान, यमुना जल दान, संगम का जलदान
श्री राधामाधव की प्रसन्नता हेतु इन समस्त प्रकार का दान श्रद्धा एवं सामर्थ्यानुसार अवश्य करते रहना चाहिए | इससे समस्त प्रकार के संकट का नाश, देवों एवं पितरों की प्रसन्नता, पितृदोष का नाश, आयु आरोग्यता, लक्ष्मी प्राप्ति, सौभाग्य प्राप्ति, सुख एवं शांति की आयु, प्राप्ति होती है।
दीपदान से आयु और नेत्रज्योति की प्राप्ति होती है। अग्निपुराण के अनुसार धन और सन्तानदि की भी प्राप्ति होती है। दीपदान करने वाला सौभाग्य युक्त दीपदान से होकर स्वर्गलोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है। दीपदान सभी व्रतों से विशेष फलदायक है। पुराजानुसार भगवान कृष्ण के मंदिर में एक वर्ष तक दीपदान करने से वह सम्पूर्ण फल को प्राप्त करता है
पीपल तथा वटवृक्ष के मूल में दीपदान करने से सर्वकार्य की सिद्धि होती हैं। श्रीराधामाधव भगवान की प्रीति के लिए विशेषकर शनिवार को दर्शन एवं सायं काल में तिल के तेल का दीपदान करने से मनोकामना की सिद्धि होती है। प्रत्येक शनिवार को सायंकाल, भगवान की प्रसन्नता के लिए तिल के 21, 51, 101, 201, 301, 501, 1001 अथवा 11,000 दीपदान करने अभीष्ट फल प्राप्त होता है।
मत्स्य पुराण के अनुसार सर्वश्रेष्ठ तुलादान’ मनुष्यों के सभी पापों को नष्ट करने वाला तथा दुःस्वप्नों विनाशक है। इस ‘दान’ को भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में किया था। उसके बाद आयरीब, परशुराम, कार्तवीर्यार्जुन, प्रहलाद, पृथु तथा भरत आदि अन्यान्म राजाओं ने किया था। मत्स्य पुराण के अनुसार संसारभय से भयभीत मनुष्य को जन्मदिन के अवसर पर, मकर संक्रान्ति, कर्क संक्रान्ति के समय, पुण्यदिनों में, अक्षय तृतीया, अक्षय नवमी, अमावस्या, पुर्णिमा, द्वादशी, तिथियों में, सूर्य चन्द्र ग्रहण के अवसर पर, विवाह के अवसर पर, दुःस्वप्न देखने पर, किसी प्रकार के अपशकुन होने पर, दुर्घटना का भय उपस्थित होने पर, मृत्युन्जय भगवान की प्रसन्नता के लिए, या जब जहाँ श्रद्धा उत्पन्न हो जाए तो किसी तीर्थ, गोशाला, पवित्र नदी के तट पर या मंदिर में इस श्रेष्ठ तुलादान को देना चाहिए |
इस ‘तुलादान’ में तराजू की पूजा प्रार्थना करके एक पलड़े में स्वयं बैठना चाहिए एवं दूसरे पलड़े में
- गुड़
- चीनी
- शुद्ध घी
- तेल
- नमक
- गेंहू का आटा
- चावल
- दाल ( चने की, मूंग की, उड़द की )
- वस्त्र, कम्बल
- तिल
- स्टील ताँबे, पीतल का पात्र
- फल, नारियल
- चाँदी (पात्र अथवा आभूषण )
- स्वर्ण (2 ग्राम कम से कम अथवा उपयोगी आभूषण)
इन 14 प्रकार की सामग्री को अपने वजन बराबर तौलकर, दक्षिणा सहित मंदिर में दान करना चाहिए । अथवा केवल चावल या केवल आटा या केवल गुड़ या केवल तेल या केवल लोहे के पात्र आदि एक-एक सामग्री द्वारा अपने वजन बराबर तुलादान करना चाहिए ।
बिमारी में कष्ट निवृत्ति के लिए केवल गुड़ या केवल तेल से तुलादान करने से आयु, आरोग्य का लाभ मिलता है। इस प्रकार तुलापुरुष महादान से समस्त प्रकार के उपद्रव शांत होते है। शरीर कष्ट से निवृत्ति होती है। नवग्रह शांति होती है एवं सुख, सौभाग्य, लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
पुराणों के अनुसार किसी भी बड़े अनुष्ठान यथा गृह प्रवेश, नक्षत्र शांति, वास्तु शांति एवं विशेष ग्रह पीड़ा से मुक्ति प्राप्त करने के लिए छाया पात्र दान अवश्य करना चाहिए। इस दान में कांसे, पीतल, चांदी या स्वर्ण के पात्र में शुद्ध घी से पूर्ण भरकर अपने मुख की छाया देखें तदुपरांत संकल्प के साथ छाया पात्र को दान करने से समस्त प्रकार के उपद्रव शांत होते है एवं आयु, आरोग्य, लक्ष्मी एवं सफलता प्राप्त होती है।