श्री राधामाधव देवस्थानम्

Shri Radha Madhav Devasthanam

मंदिर परिसर में दिव्य विशाल पीपल वृक्ष है जो काफी प्राचीन समय से अपनी दिव्यता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण क्षेत्र की जनता में लोकप्रिय है। इस प्राचीन पीपल वृक्ष की ‘श्री लक्ष्मीनारायण पीपल’ के रूप में पूजा एवं सेवा की जाती है।
मंदिर परिसर में दिव्य विशाल पीपल वृक्ष है जो काफी प्राचीन समय से अपनी दिव्यता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण क्षेत्र की जनता में लोकप्रिय है। इस प्राचीन पीपल वृक्ष की ‘श्री लक्ष्मीनारायण पीपल’ के रूप में पूजा एवं सेवा की जाती है।

सूर्य संक्रांति के दान

भारत वर्ष आध्यात्म एवं संस्कृति प्रधान देश है। यहां धार्मिक जीवन व्रत, पर्व, उत्सव, दान, जप-तप, पूजन आदि सत्कर्मों एवं पूण्यार्जन के कार्यों से सदा पूरित रहा है। परार्थ के लिए उत्सर्ग एवं त्याग यहां की सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है। दाता के लिए विशेष कल्याणकारी तथा ग्रहीता के लिए परम उपयोगी होने से दान एक मुख्य कर्म है। दान करने से विद्या, ऐश्वर्य, पुत्रादि संतति, कीर्ति, यश, बल, देवलोक एवं अभिष्ट की प्राप्ति होती है। भारतीय संस्कृति में वर्णित चारों आश्रमों में गृहस्थ आश्रम को महत्ता दी गई है तथा गृहस्थी को अपने सामथ्र्य अनुसार दान करने की अनिवार्यता बताई गई है। यूं तो दान नित्यकर्णीय कर्म है तथापि शास्त्रों में विभिन्न अवसरों पर दिए जाने वाले दानों का विशेष महत्व प्रतिपादित है। यथा-पर्वों पर ग्रहण काल में, तीर्थों में इत्यादि। संक्रांति काल में दिए जाने वाले दान भी उनमें से हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्रानुसार मेष आदि द्वादश राशियों में सूर्य का प्रवेश करना ही ‘संक्रांति’ कहा जाता है। सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश काल संक्रांति काल कहलाता है। इस संक्रांति के समय दिए जाने वाले दानों का विशेष महत्व होता है। शास्त्रानुसार जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो ग्रीष्म ऋतु का आरंभ होता है। इस काल में भेड़ दान करना चाहिए एवं शीतल जल, पौष्टिक पेय एवं छाता दान करना चाहिए। वृष राशि में सूर्य की संक्रांति होने पर गोदान अथवा गाय के मूल्य का दान करना चाहिए, गोवंश का दान श्रेष्ठ होता है। गोदान करने से मनुष्य विपत्ति का नाश करता है तथा दिव्यलोक प्राप्त करता है। मिथुन राशि में सूर्य का संक्रमण होने पर वस्त्र, अन्न एवं जल दान करना, फल दान करना चाहिए। इस काल ब्राम्हणों अथवा ब्राम्हण कन्याओं को तिल दान करने से देवी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। कर्क की संक्रांति होने पर घृत, धेनु या घी एवं गो अथवा गाय के मूल्य का दान करना श्रेष्कर होता है। इस समय अन्न, वस्त्र, शुद्द घी तथा गोदान करना चाहिए। इससे आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है। सिंह राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर सोर्ण या सोर्णा भूषण एवं छाता का दान करना चाहिए एवं विविध प्रकार के अन्न दान करना चाहिए, इससे विपत्ति का नाश, संकटनाश एवं अभिष्ट फल प्राप्त होता है। कन्या राशि में संक्रमण होने पर वस्त्र, गौ, या गाय का मूल्य एवं विविध औषधि का दान करना चाहिए। इस काल अनेक प्रकार के रोगों का प्रकोप होता है, अतः औषधि दान से आयु अरोग्यता प्राप्त होती है। तुला संक्रांति होने पर धान्य-दान एवं बीज का दान श्रेष्कर होता है। इस समय ऊनी वस्त्र एवं अग्नि यंत्रों का दान करना चाहिए। वृश्चिक राशि में सूर्य संक्रमण के समय वस्त्र एवं भूमि, ग्रह दान हितकर है। इस दान से विपत्ति का नाश एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। धनु संक्रांति के समय वस्त्र एवं वाहन दान करना चाहिए। वाहन दान करना उत्तम लोक की प्राप्ति में सहायक होता है। इस काल ब्राम्हणों को तिल, केसर, अग्नि, घी एवं दलिया दान करने से आयु आरोग्य प्राप्ति होती है एवं अग्नि तापने का ईंधन या यंत्र दान करने से शस्त्रु नष्ट होते हैं। मकर राशि में सूर्य के प्रवेश होने पर जूता, लकड़ी एवं अग्नि या अग्नि यंत्र दान करना चाहिए। इस काल गोदान या गाय के मूल्य का दान एवं तिल दान करना श्रेष्कर होता है। इस समय वस्त्र, तिल एवं गोवंश दान करने से रोगों का नाश होता है। सूर्य द्वारा कुंभ राशि में प्रवेश करने पर गोदान या गाय के मूल्य का दान, गाय के चारा का दान, जल दान, सुगंधित द्रव्य, तेल पात्र, काजल इत्यादि प्रसाधनों का दान करना चाहिए। मीन संक्रांति के अवसर पर स्नान आदि के पदार्थ, विभिन्न पुष्प का दान तथा पुष्प मालाओं का दान, इत्र का दान, सुगंधित धूप का दान एवं भूमि दान करना चाहिए। सभी प्रकार के दानों के साथ यथाशक्ति दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। उपर्युक्त दान संक्रांति काल में अति शुभ फलदायी कहे गए हैं। इस प्रकार विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार के दान करने से मनुष्य आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, सम्पन्त्ति एवं विपत्ति का नाश कर अभिष्ट फल को प्राप्त कर अपना जीवन धन्य बनाते हैं।

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