श्री विवाह पंचमी महिमा मार्गशीर्ष की पंचमी तिथि को त्रेतायुग में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का विवाह जनकपुर में संपन्न हुआ था। सीता स्वयंवर में भगवान श्रीराम के द्वारा शिव धनुष भंग करने के उपरान्त विदेह राज जनक जी के द्वारा अयोध्यापुरी दूत भेजने पर महाराज श्री दशरथ जी के पुत्र श्री भरत जी एवं श्री शत्रुहन जी के साथ बारात लेकर जनकपुर पधारते हैं।
इसके अनन्तर विवाह की विधि पंचमी तिथि को सम्पन्न होती है। इसलिए अयोध्या तथा जनकपुर में विवाह पंचमी का महोत्सव बड़े समारोह से प्रत्येक मंदिर में मनाया जाता है। भक्तगण भगवान की बारात निकालते हैं तथा भगवान की प्रतिमाओं द्वारा रात्रि में विधिपूर्वक विवाह कराते हैं। देश के विभिन्न भागों में श्रीरामभक्त यह महोत्सव अपने.अपने ढंग से आनन्द और उल्लासपूर्वक मनाते हैं। पुराणानुसार मार्ग शीर्ष शुक्लपक्ष पंचमी तिथि को सरयू स्नानए गंगा स्नान अथवा किसी भी पवित्र नदी में स्नान का करोड़ गुना फल प्राप्त होता है एवं श्री भगवान की प्रसन्नता के लिए किया जाने वाला दान करोड़ गुना फल प्रदान करता है। इस तिथि को स्नान दान करने वाले को भगवान की कृपा स्वरूप मनोरथ सिद्धि एवं भक्ति प्राप्त होती है।
इस दिन लोग भगवान श्रीराम और देवी सीता के विवाह की खुशी में व्रत और पूजन करते हैं। इस दिन भगवान राम और देवी सीता का विवाह भी किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन यदि अविवाहित लोग भगवान का विवाह करें, तो उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। वहीं, विवाहित लोगों को जीवन में सुख-शांति और प्रेम की प्राप्ति होती है। बावजूद इसके लोग विवाह पंचमी पर अपनी कन्या या पुत्र का विवाह नहीं करते। जिस शुभ अवसर पर भगवान राम और देवी सीता का विवाह हुआ था, उस दिन विवाह न करने के पीछे एक बड़ा कारण माना गया है। यही वजह है कि लोग इस दिन पूजा-पाठ और व्रत तो उत्साह के साथ करते हैं, लेकिन शादी नहीं। इसके पीछे क्या कारण है, आइए आपको बताएं।
विवाह पंचमी पर वैसे तो सभी शादियां करने से बचते हैं, लेकिन मिथिलांचल और नेपाल में इस दिन विवाह विशेष रूप से वर्जित माना गया है। असल में देवी सीता मिथिला की बेटी कही जाती हैं और देवी सीता ने विवाह के बाद जितने कष्ट झेले उसके कारण ही मिथिलावासी अपनी बेटियों की शादी इस दिन करने से बचते हैं। देवी सीता ने विवाह के कुछ दिन बाद ही 14 साल का वनवास किया और फिर रावण के हरण के कारण भगवान श्रीराम से दूरी का वियोग सहा। इतना ही नहीं वनवास समाप्ति के बाद जब भगवान राम वापस आयोध्या पहुंचे तो भी देवी सीता ने महारानी का सुख नहीं भोगा। भगवान श्रीराम ने गर्भवती देवी सीता का परित्याग कर दिया था।
सीता राम चरित अति पावन । मधुर सरस अरु अति मनभावन ॥
पुनि पुनि कितनेहू सुने सुनाये । हिय की प्यास बुझत न बुझाये॥
विवाह पंचमी के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई।
इस तरह राजकुमारी सीता को महारानी का सुख कभी नहीं मिला। देवी ने अपना वैवाहिक जीवन बेहद कष्टमय गुजारा था और यही कारण है कि विवाह पंचमी पर लोग विवाह करने से बचते हैं।
भृगु संहिता में इस दिन को विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त के रुप में बताया गया है। क्योंकि, जब भगवान राम को राजा बनने का सौभाग्य मिलने वाला तो उन्हें वनवास हो गया और जब लौट कर राज बने तो देवी सीता को वापस आश्रम में अपने दिन काटने पड़े। इस तरह से भगवान राम और देवी सीता ने कभी भी वैवाहिक सुख नहीं उठाया। यही कारण है कि अबूझ मुहूर्त होने के बाद भी विवाह पंचमी के दिन लोग अपनी बेटियों की शादी नहीं करते हैं।
यही कारण है कि विवाह पंचमी की कथा में भगवान श्रीराम और देवी सीता के विवाह की कथा भी विवाह के साथ ही खत्म हो जाती है। विवाह के बाद भगवान के कष्टमय जीवन का जिक्र कथा में नहीं किया गया है। इस शुभ दिन सुखांत करके ही कथा का समापन कर दिया जाता है।