श्री राधामाधव देवस्थानम्

Shri Radha Madhav Devasthanam

मंदिर परिसर में दिव्य विशाल पीपल वृक्ष है जो काफी प्राचीन समय से अपनी दिव्यता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण क्षेत्र की जनता में लोकप्रिय है। इस प्राचीन पीपल वृक्ष की ‘श्री लक्ष्मीनारायण पीपल’ के रूप में पूजा एवं सेवा की जाती है।
मंदिर परिसर में दिव्य विशाल पीपल वृक्ष है जो काफी प्राचीन समय से अपनी दिव्यता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण क्षेत्र की जनता में लोकप्रिय है। इस प्राचीन पीपल वृक्ष की ‘श्री लक्ष्मीनारायण पीपल’ के रूप में पूजा एवं सेवा की जाती है।

श्री कुंजबिहारी की आरती

सर्व दोष निवारक श्री कुंजबिहारी जी की आरती

कहते हैं, कोई भी पूजा बिना आरती के अधूरी मानी जाती है। उत्तर भारत में कुंज बिहारी जी यानी श्री कृष्ण जी की आरती का बड़ा ही विशेष महत्व है। कुंज बिहारी जी की आरती के बिना भगवान श्री कृष्ण की पूजा अधूरी मानी गई है। श्री कृष्ण यानी कुंज बिहारी जी की आरती से घर में नकारात्मक शक्तियां नहीं आती है। इसके अलावा सभी तरह के दुख और परेशानियां भी दूर हो जाते हैं।

।। आरती श्री कुंजबिहारी जी ।।

 

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली।।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा।
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्री बनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू।
चहुँ दिसि गोपी ग्वाल धेनू।
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

पाएं सभी आरती का संग्रह सिर्फ श्री श्रीराधामाधव पर।

 

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